Durga Saptshati – Adhyay – 12
देवी-चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
Video – Adhyay 12 – Hindi
Narendra Chanchal
Video – Adhyay 12 – Sanskrit + Hindi
Satyam Anandjee
बारहवां अध्याय (श्री दुर्गा सप्तशती) – अर्थ सहित
Durga Mantra Jaap (माँ दुर्गा मंत्र जाप)







ॐ विद्युद्दामसमप्रभां मृगपतिस्कन्धस्थितां भीषणां
कन्याभिः करवालखेटविलसद्धस्ताभिरासेविताम्।
हस्तैश्चक्रगदासिखेटविशिखांश्चापं गुणं तर्जनीं
बिभ्राणामनलात्मिकां शशिधरां दुर्गां त्रिनेत्रां भजे॥
ध्यान
मैं तीन नेत्रोंवाली दुर्गादेवीका ध्यान करता (करती) हूँ, उनके श्रीअंगोकी प्रभा बिजलीके समान है। वे सिंहके कंधेपर बैठी हुई भयंकर प्रतीत होती हैं।
हाथोंमें तलवार और ढाल लिये अनेक कन्याएँ उनकी सेवामें खड़ी हैं। वे अपने हाथोंमें चक्र, गदा, तलवार, ढाल, बाण, धनुष, पाश और तर्जनी मुद्रा धारण किये हुए हैं।
उनका स्वरूप अग्रिमय है तथा वे माथेपर चन्द्रमाका मुकुट धारण करती हैं।
एभिः स्तवैश्च मां नित्यं स्तोष्यते यः समाहितः।
तस्याहं सकलां बाधां नाशयिष्याम्यसंशयम्॥२॥
देवी बोलीं- देवताऒं! जो एकाग्रचित होकर प्रतिदिन इन स्तुतियों से मेरा ध्यान करेगा, उसकी सारी बाधा मैं निश्चय ही दूर कर दूंगी।
कीर्तयिष्यन्ति ये तद्वद् वधं शुम्भनिशुम्भयोः॥३॥
जो मधु-कैटभका नाश, महिषासुरका वध, शुम्भ-निशुम्भके संहार के प्रसंग का पाठ करेंगे।
श्रोष्यन्ति चैव ये भक्त्या मम माहात्म्यमुत्तमम्॥४॥
तथा अष्टमी, चतुर्दशी और नवमी को जो एकाग्रचित भक्तिपूर्वक मेरा माहात्म्य का श्रवण करेंगे –
भविष्यति न दारिद्र्यं न चैवेष्टवियोजनम्॥५॥
उन्हें कोई पाप नहीं छू सकेगा। उन पर पापजनित आपत्तियां भी नहीं आएंगी। उनके घर में दरिद्रता नहीं होगी तथा उनको कभी प्रेमीजनों के विछोह का कष्ट नहीं भोगना पड़ेगा।
न शस्त्रानलतोयौघात्कदाचित्सम्भविष्यति॥६॥
इतना ही नहीं, उन्हें शत्रु से, लुटेरों से, राजा से, शस्त्र से, अग्नि से तथा जलराशि से भी कभी भय नहीं होगा।
श्रोतव्यं च सदा भक्त्या परं स्वस्त्ययनं हि तत्॥७॥
इसलिए सबको एकाग्रचित होकर भक्तिपूर्वक मेरे इस माहात्म्य को सदा पढना और सुनना चाहिए। यह परम कल्याणकारक है।
तथा त्रिविधमुत्पातं माहात्म्यं शमयेन्मम॥८॥
मेरा माहात्मय महामारीजनित समस्त उपद्रवों एवं तीनों प्रकार के उत्पातोंको शांत करने वाला है।
सदा न तद्विमोक्ष्यामि सांनिध्यं तत्र मे स्थितम्॥९॥
मेरे जिस मंदिर में प्रतिदिन विधिपूर्वक मेरे इस माहात्म्य का पाठ किया जाता है, उस स्थान को मैं कभी नहीं छोड़ती। वहां सदा ही मेरा सन्निधान बना (निवास) रहता है।
सर्वं ममैतच्चरितमुच्चार्यं श्राव्यमेव च॥१०॥
पूजा, होम तथा महोत्सव के अवसरों पर मेरे इस चरित्र का पूरा-पूरा पाठ और हवन करना चाहिए।
प्रतीच्छिष्याम्यहं प्रीत्या वह्निहोमं तथा कृतम्॥११॥
ऐसा करने पर मनुष्य विधि को जानकर या बिना जाने भी मेरे लिए जो पूजा या होम आदि करेगा, उसे मैं बड़ी प्रसन्नताके साथ ग्रहण करूंगी।
तस्यां ममैतन्माहात्म्यं श्रुत्वा भक्तिसमन्वितः॥१२॥
शरद काल में जो वार्षिक महापूजा की जाती है, उस अवसर पर जो मेरे इस माहात्म्य को भक्तिपूर्वक सुनेगा,
मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः॥१३॥
वह मनुष्य मेरे प्रसाद से सब बाधाऒं से मुक्त तथा धन, धान्य एवं पुत्र से सम्पन्न होगा। इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।
पराक्रमं च युद्धेषु जायते निर्भयः पुमान्॥१४॥
मेरे इस माहात्म्य, मेरे प्रादुर्भाव की सुंदर कथाएं तथा युद्ध में किए हुए मेरे पराक्रम सुनने से मनुष्य निर्भय हो जाता है।
नन्दते च कुलं पुंसां माहात्म्यं मम शृण्वताम्॥१५॥
मेरे माहात्म्य का श्रवण करने वाले पुरुषों के शत्रु नष्ट हो जाते हैं, उहें कल्याण की प्राप्ति होती तथा उनका कुल आनंदित रहता है।
ग्रहपीडासु चोग्रासु माहात्म्यं शृणुयान्मम॥१६॥
सर्वत्र शांति-कर्म में, बुरे स्वप्न दिखायी देने पर तथा ग्रहजनित भयंकर पीड़ा उपस्थित होने पर मेरा माहात्म्य श्रवण करना चाहिए।
दुःस्वप्नं च नृभिर्दृष्टं सुस्वप्नमुपजायते॥१७॥
इससे सब विघ्न तथा भयंकर ग्रह-पीड़ाएं शांत हो जाती हैं और मनुष्यों द्वारा देखा हुआ दु:स्वप्र शुभ स्वप्न में परिवर्तित हो जाता है।
संघातभेदे च नृणां मैत्रीकरणमुत्तमम्॥१८॥
बालग्रहों से आक्रांत हुए बालकों के लिए यह माहात्म्य शांतिकारक है। मनुष्योंके संगठन में फूट होने पर यह मित्रता कराने वाला होता है।
रक्षोभूतपिशाचानां पठनादेव नाशनम्॥१९॥
यह माहात्म्य समस्त दुराचारियों के बल का नाश कराने वाला है। इसके पाठमात्र से राक्षसों, भूतों और पिशाचों का नाश हो जाता है।
पशुपुष्पार्घ्यधूपैश्च गन्धदीपैस्तथोत्तमैः॥२०॥
मेरा यह सब माहात्म्य मेरे सामीप्य की प्राप्ति कराने वाला है। पशु, पुष्प, अर्घ्य, धूप, दीप, गंध आदि से पूजन करने से,
अन्यैश्च विविधैर्भोगैः प्रदानैर्वत्सरेण या॥२१॥
ब्राह्मण भोज से, होम से, प्रतिदिन अभिषेक करने से, नाना प्रकार के भोगों के अर्पण से तथा दान आदि से एक वर्ष तक मेरी आराधना से मुझे जितनी प्रसन्नता होती है,
श्रुतं हरति पापानि तथाऽऽरोग्यं प्रयच्छति॥२२॥
उतनी प्रसन्नता मेरे इस उत्तम चरित्रका एक बार श्रवण करनेमात्रसे हो जाती है।
यह माहात्म्य श्रवण करने पर पापोंको हर लेता और आरोग्य प्रदान करता है।
युद्धेषु चरितं यन्मे दुष्टदैत्यनिबर्हणम्॥२३॥
मेरे प्रादुर्भाव का कीर्तन समस्त भूतों से रक्षा करता है तथा मेरा युद्धविषयक चरित्र दुष्ट दैत्यों का संहार करने वाला है।
युष्माभिः स्तुतयो याश्च याश्च ब्रह्मर्षिभिःकृताः॥२४॥
इसके श्रवण करनेपर मनुष्यों को शत्रु का भय नहीं रहता। देवताऒं! तुमने और ब्रह्मर्षियों ने जो मेरी स्तुतियां की हैं।
अरण्ये प्रान्तरे वापि दावाग्निपरिवारितः॥२५॥
तथा ब्रह्माजी ने जो स्तुतियां की हैं, वे सभी कल्याणमयी बुद्धि प्रदान करती हैं। वन में, सुने मार्ग में (वीरान मार्ग में), दावानल से घिर जाने पर,
सिंहव्याघ्रानुयातो वा वने वा वनहस्तिभिः॥२६॥
निर्जन स्थान में, लुटेरों के दांव में पड़ जाने पर या शत्रुऒं से पकड़े जाने पर, अथवा जंगल में सिंह, व्याघ्र या जंगली हाथियों के पीछा करने पर (मेरे चरित्र का स्मरण करने से कष्टों से रक्षा होती है)
आघूर्णितो वा वातेन स्थितः पोते महार्णवे॥२७॥
कुपित राजा के आदेशसे वध या बंधन के स्थान में ले जाए जाने पर, महासागरमें नावपर बैठनेके बाद भारी तूफान से नाव के डगमग होने पर,
सर्वाबाधासु घोरासु वेदनाभ्यर्दितोऽपि वा॥२८॥
और अत्यंत भयंकर युद्ध में शस्त्रों का प्रहार होनेपर, वेदना से पीडि़त होने पर, अथवा सभी भयानक बाधाओं के उपस्थित होने पर
मम प्रभावात्सिंहाद्या दस्यवो वैरिणस्तथा॥२९॥
दूरादेव पलायन्ते स्मरतश्चरितं मम॥३०॥
जो मेरे चरित्र का स्मरण करता है, वह संकटमुक्त हो जाता है। मेरे प्रभाव से सिंह आदि हिंसक जंतु नष्ट हो जाते हैं तथा लुटेरे और शत्रु भी मेरे चरित्र का स्मरण करने वाले पुरुष से दूर भागते हैं।
इत्युक्त्वा सा भगवती चण्डिका चण्डविक्रमा॥३२॥
ऋषि कहते हैं – ऐसा कहकर प्रचंड पराक्रम वाली भगवती चंडिका
तेऽपि देवा निरातङ्काः स्वाधिकारान् यथा पुरा॥३३॥
सब देवताऒं के देखते-देखते अंतर्धान हो गईं। फिर समस्त देवता भी शत्रुऒं के मारे जाने से निर्भय हो
दैत्याश्च देव्या निहते शुम्भे देवरिपौ युधि॥३४॥
पहले की ही भांति यज्ञभागका उपभोग करते हुए अपने-अपने अधिकार का पालन करने लगे। संसार का विध्वंस करने वाले महाभयंकर पराक्रमी देवशत्रु शुम्भ तथा
निशुम्भे च महावीर्ये शेषाः पातालमाययुः॥३५॥
महाबली निशुम्भ के युद्ध में देवी द्वारा मारे जाने पर शेष दैत्य पाताल लोक में चले आए।
सम्भूय कुरुते भूप जगतः परिपालनम्॥३६॥
राजन्! इस प्रकार भगवती अम्बिका देवी नित्य होती हुई भी पुन:-पुन: प्रकट होकर जगत की रक्षा करती हैं।
सा याचिता च विज्ञानं तुष्टा ऋद्धिं प्रयच्छति॥३७॥
वे ही इस विश्व को मोहित करतीं, वे ही जगत को जन्म देतीं तथा वे ही प्रार्थना करने पर संतुष्ट हो समृद्धि प्रदान करती हैं।
महाकाल्या महाकाले महामारीस्वरूपया॥३८॥
राजन! महाप्रलय के समय महामारी का स्वरूप धारण करने वाली वे महाकाली ही इस समस्त ब्रह्मांड में व्याप्त हैं।
स्थितिं करोति भूतानां सैव काले सनातनी॥३९॥
वे ही समय-समय पर महामारी का रूप बनाती हैं और वे ही स्वयं अजन्मा होती हुई भी सृष्टि के रूप में प्रकट होती हैं। वे सनातनी देवी ही समयानुसार सम्पूर्ण भूतों की रक्षा करती हैं।
सैवाभावे तथाऽलक्ष्मीर्विनाशायोपजायते॥४०॥
मनुष्यों के अभ्युदयके समय वे ही घर में लक्ष्मी के रूप में स्थित हो उन्नति प्रदान करती हैं और वे ही अभाव के समय दरिद्रता बनकर विनाश का कारण होती हैं।
ददाति वित्तं पुत्रांश्च मतिं धर्मे गतिं शुभाम्॥ॐ॥४१॥
पुष्प, धूप और गंध आदि से पूजन करके उनकी स्तुति करने पर वे धन, पुत्र, धार्मिक बुद्धि तथा उत्तम गति प्रदान करती हैं।
फलस्तुतिर्नाम द्वादशोऽध्यायः॥१२॥
इस प्रकार श्रीमार्कंडेयपुराण में सावर्णिक मन्वंतर की कथा के अंतर्गत देवीमाहाम्य में फलस्तुति नामक बारहवां अध्याय पूरा हुआ।
For more bhajans from category, Click -
D • Durga • Durga Bhajan 12 • Durga Mahatmya • Durga Saptashati • Hindi • Meaning • Saptashati
Next.. (आगे पढें…..) – Shree Durga Saptashati – 13
Click – Durga Saptashati – 13

Bhajan List
Durga Devi Bhajans – Hindi
Devi Aarti – Hindi
Bhajan, Aarti, Chalisa, Dohe – List
