श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिग की कथा


Shiv Bhajan

श्रीकेदारनाथ ज्योतिर्लिग की कथा


महाद्रिपार्श्वे च तटे रमन्तं
सम्पूज्यमानं सततं मुनीन्द्रैः।
सुरासुरैर्यक्ष महोरगाढ्यैः
केदारमीशं शिवमेकमीडे॥

श्रीकेदारनाथ ज्योतिर्लिग

शंकर भगवान के बारह ज्योतिर्लिंग में से श्रीकेदारनाथ का ज्योतिर्लिग हिमाच्छादित प्रदेश का एक दिव्य ज्योतिर्लिग है। श्री केदारनाथ हिमालय के केदार नामक श्रृंगपर स्थित हैं।

शिखर के पूर्व की ओर अलकनन्दा के तट पर श्री बदरीनाथ अवस्थित हैं और पश्चिम में मन्दाकिनी के किनारे श्री केदारनाथ हैं।

गौरीकुंड से दो-चार कोस की दूरी पर ऊंचे हिमशिखरों के परिसर में, मंदाकिनी नदी की घाटी में भगवान शंकरजी का दिव्य ज्योतिर्लिंग, केदारनाथ का मंदिर दिखाई देता है।

Kedarnath Temple

यही कैलाश है जो भगवान शंकरजी का आद्य निवास स्थान है। लेकिन वहाँ शंकरजी की मूर्ति या लिंग नहीं है। केवल त्रिकोन के आकार का ऊँचाई वाला स्थान है।

कहते हैं वह महेश का (भैंसे का) पृष्ठभाग है। इस ज्योतिर्लिग का जो इस तरह का आकर बना है उसकी कथा इस प्रकार है –

श्री केदारनाथ ज्योतिर्लिग की कथा

कौरव-पांडवों के युद्ध में अपने ही लोगों की हत्या हुई। पापलाक्षन करने के लिए पांडव तीर्थस्थान काशी पहुँचे।

परन्तु भगवान विश्वेश्वरजी उस समय हिमालय के कैलास पर गए हुए है, यह समाचार मिला।

पांडव काशी से निकले और हरिद्वार होकर हिमालय की गोद मे पहुँचे।

दूर से ही उन्हें भगवान शकरजी के दर्शन हुए। लेकिन पांडवों को देखकर शंकर भगवान लुप्त हो गए।

गिरिश्वर गिरिप्रिय कैलाशवासी कृपानिधि

यह देखकर धर्मराज ने कहा – हे देव, हम पापियों को देखकर आप लुप्त हुए। ठीक है, हम आप को ढूँढ निकालेंगे। आपके दर्शन से हमारे सारे पाप धुल जाने वाले हैं।

जहाँ आप लुप्त हुए है वह स्थान अब गुप्तकाशी के रूप में पवित्र तीर्थ बनेगा।

गुप्तकाशी से (रुद्रप्रयाग) पांडव आगे निकलकर हिमालय के कैलास, गौरीकुंड के प्रदेश में घूमते रहे। शंकर भगवान को ढूँढते रहे।

इतने में नकुल-सह्देव को एक भैंसा दिखाई दिया।

उसका अनोखा रूप देखकर धर्मराज ने कहा- भगवान् शंकरजी ने हो यह भैंसे का अवतार धारण किया हुआ हे। वै हमें परख रहे हैं।

महाकाल महादेव मृत्युंजय महेश्वर

फिर क्या! गदाधारी भीम उस भैंसे के पीछे लगे।

भैंसा उछल पड़ा और भीम के हाथ नहीं आया। आखिर भीम थक गया।

फिर भी भीम ने गदा-प्रहार से भैंसे को घायल किया।

फिर वह भैंसा एक दर्रे के पास जमीन में मुँह दबाकर बैठ गया।

भक्तवत्सल परमेश्वर त्रिलोकेश कैलाशवास

भीम ने उसकी पूँछ पकड़कर खींचा।

भैंसे का मुँह इस खिंचाव से सीधे नेपाल में जा पहुंचा। नेपाल में वह पशुपतिनाथ के नाम से जाना जाने लगा।

भैंसे का पार्श्व भाग केदार धाम में ही रहा।

महेश के उस पार्श्व भाग से एक दिव्य ज्योति प्रकट हुई।

दिव्य ज्योति में से शंकर भगवान प्रकट हुए। पांडवों को उन्होंने दर्शन दिए।

शंकर भगवान के दर्शन से पांडवों का पापक्षालन हुआ।

भगवान शंकरजी ने पांडवों से कहा – मै अभी यहाँ इसी त्रिकोणाकार में ज्योतिर्लिंग के रूप में हमेशा के लिए रहूँगा। केदारनाथ के दर्शन से भक्तगण पावन होंगे।

Kedarnath Jyotirlinga

महेशरूप लिए हुए शंकरजी को भीम ने गदा का प्रहार किया था। अत: भीम को बहुत पछतावा हुआ. बुरा लगा। वह महेश का शरीर घी से मलने लगा। उस बात की यादगार के रूप में आज भी उस त्रिकोणाकार दिव्य ज्योतिर्लिग केदारनाथ को घी से मलते है।

जिस स्थान से पांडव स्वर्ग सिधारे उस ऊँची चोटी को स्वर्गरोहिणी कहते है।

नर-नारायण जब बद्रिका ग्राम में जाकर पार्थिक पूजा करने लगे तो उनसे पार्थिव शिवजी वहां प्रकट हो गए।

Kedarnath Temple

कुछ समय पश्चात् एक दिन शिवजी ने प्रसन्न होकर वर मांगने को कहा तो नर-नारायण लोक-कल्याण की कामना से उनसे स्वयं अपने स्वरूप से पूजा के निमित्त इस स्थान पर सर्वदा स्थित रहने की प्रार्थना की।

उन दोनों की इस प्रार्थना पर हिमाश्रित केदार नामक स्थान पर साक्षात महेश्वर ज्योति स्वरूप हो स्वयं स्थित हुए और वहां उनका केदारेश्वर नाम पड़ा।

केदारेश्वर के दर्शन से स्वप्न में भी दुःख प्राप्त नहीं होता। शंकर (केदारेश्वर) का पूजन कर पांडवों का सब दुःख जाता रहा।

Jyotirling Katha

केदारनाथ

हिमालय की देवभूमि में बसे इस तीर्थस्थान के दर्शन केवल छ: माह के काल में ही होते हैं।

वैशाख से लेकर आश्विन महीने तक के कालाविधि में इस ज्योतिर्लिग की यात्रा लोग कर सकते हैं।

वर्ष के अन्य महीनों में कड़ी सर्दी होने से, हिमालय पर्वत का यह प्रदेश बर्फाच्छादित रहने के कारण, श्रीकेदारनाथ का मंदिर दर्शनार्थी भक्तों के लिए बंद रहते है।

कार्तिक महीने में बर्फवृष्टी तेज होने पर इस मंदिर में घी का नंदादीप जलाकर श्रीकेदारेश्वर का भोग सिंहासन बाहर लाया जाता है। और मंदिर के द्वार बंद किये जाते हैं।

कार्तिक से चैत्र तक श्रीकेदारेश्वरजी का निवास नीचे जोशीमठ में रहता है।

वैशाख में जब बर्फ पिघल जाती है तब केदारधाम फिर से खोल दिया जाता है। इस दिव्य ज्योति के दर्शन कर लेने मे शिवभक्त अपने आपको धन्य मानते हैं।

हरिद्वार या हरद्वार को मोक्षदायिनी मायापुरी मानते हैं। इस हरिद्वार के आगे ऋषीकेश, देवप्रयाग, रुद्रप्रयाग, सोनप्रयाग और त्रियुगी नारायण, गौरीकुंड इस मार्ग से केदारनाथ जा सकते हैं। कुछ प्रवास मोटर से और कुछ पैदल से करना पडता है। हिमालय का यह रास्ता अति दुर्गम और खतरा पैदा करने वाला होता है। परंतु अटल श्रद्धा के कारण यह कठिन रास्ता भक्त-यात्री पार करते हैं। श्रद्धा के बलपर इस प्रकार संकटों पर मात की जाती है।

चढान का मार्ग कुछ लोग घोडे पर बैठकर, टोकरी में बैठकर या झोली की सहायता से पार करते हैं। इस तरह का प्रबंध वही किया जाता है। विश्राम के लिए बीच-बीच में धर्मशालाएँ मठ तथा आश्रम खोले गए हैं।

यात्री गौरीकुंड स्थान पर पहुँचने के बाद वहाँ के गरम कुंड के पानी से स्नान करते हैं और गणेशजी के दर्शन करते हैं। गौरीकुंड का स्थान गणेशजी का जन्मस्थान माना गया है।

इस स्थानपर पार्वती-पुत्र गणेशजी को शंकरजीने त्रिशूल के प्रहार से मस्तकहीन बनाया था और बाद में गजमुख लगाकर जिंदा किया था।

Kedarnath Jyotirling Katha
Kedarnath Jyotirling Katha

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Deepti Bhatnagar

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