ओम जय जगदीश हरे- आध्यात्मिक महत्व


ओम जय जगदीश हरे लिरिक्स के इस पेज में पहले भगवान् विष्णु की इस आरती के हिंदी लिरिक्स दिए गए है।

बाद में इस भजन का आध्यात्मिक महत्व दिया गया है और इसकी पंक्तियों से हमें कौन कौन सी बातें सीखने को मिलती है यह बताया गया है।

इस आरती की पंक्तियों से हमें कई महत्वपूर्ण बातें सीखने को मिलती हैं, जैसे की –
– भक्ति का महत्व क्या है और भक्ति क्यों करनी चाहिए,
– अपनों विकारों को स्वीकार करके ईश्वर से कैसे क्षमा मांगे,
– ईश्वर का स्वरुप क्या है, क्या उन्हें देखा सुना जा सकता है? और
– किस प्रकार अपने आपको ईश्वर के चरणों में समर्पित करना चाहिए आदि।

इसलिए, इस आरती के लिरिक्स के बाद सरल शब्दों में आरती का आध्यात्मिक महत्व दिया गया है।


Om Jai Jagdish Hare Aarti Lyrics

ओम जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे।
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥
॥ओम जय जगदीश हरे॥


जो ध्यावे फल पावे, दुख बिनसे मन का।
स्वामी दुख बिनसे मन का
सुख सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥
॥ओम जय जगदीश हरे॥


मात पिता तुम मेरे, शरण गहूं मैं किसकी।
स्वामी शरण गहूं किसकी
तुम बिन और न दूजा, आस करूं मैं किसकी॥
॥ओम जय जगदीश हरे॥


तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतरयामी।
स्वामी तुम अंतरयामी
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सब के स्वामी॥
॥ओम जय जगदीश हरे॥


तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता,
स्वामी तुम पालनकर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥
॥ओम जय जगदीश हरे॥


तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
स्वामी सबके प्राणपति
किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति॥
॥ओम जय जगदीश हरे॥


दीनबंधु दुखहर्ता, तुम रक्षक मेरे।
स्वामी तुम रक्षक मेरे
अपने हाथ बढाओ, द्वार पडा तेरे॥
॥ओम जय जगदीश हरे॥


विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
स्वमी पाप हरो देवा
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥
॥ओम जय जगदीश हरे॥


तन मन धन सब कुछ है तेरा,
(Or तन मन धन जो कुछ है, सब ही है तेरा।)
स्वामी सब कुछ है तेरा
तेरा तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा॥
॥ओम जय जगदीश हरे॥


ओम जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे।
भक्त जनों के संकट,
दास जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥
॥ओम जय जगदीश हरे॥


ओम जय जगदीश हरे आरती का आध्यात्मिक महत्व

ओम जय जगदीश हरे” आरती भगवान विष्णु की आरती है और भारत में सबसे लोकप्रिय आरतियों में से एक है।

यह आरती भगवान विष्णु की महिमा का वर्णन करती है और भक्ति का महत्व भी हमें सिखाती है। इस भजन की पंक्तियों से हमें कई महत्वपूर्ण बातें सीखने को मिलती हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:


1. ईश्वर की ही शरण में क्यों जाना चाहिए?

ओम जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे।
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥

आरती की इस पहली पंक्ति में भगवान विष्णु की महिमा का वर्णन किया गया है और उन्हें “जगदीश” कहकर संबोधित किया गया है, जिसका अर्थ है “जगत के स्वामी”।

भगवान विष्णु की महिमा और सर्वव्यापकता

भगवान विष्णु समस्त सृष्टि के स्वामी हैं और उनके पास समस्त शक्तियां हैं, वे सर्वोच्च शक्तिमान है। इसलिए वे भक्तों के संकटों को क्षण में दूर कर सकते हैं और उन्हें सुख और समृद्धि प्रदान कर सकते हैं।

यह हमें सिखाता है कि जब हम मुश्किल समय से गुजर रहे हों, तो हमें ईश्वर की शरण में जाना चाहिए। ईश्वर हमारी मदद करते है और हमें कठिनाइयों से बाहर निकालते है।


2. ईश्वर भक्ति से क्या सांसारिक लाभ मिलता है?

जो ध्यावे फल पावे, दुख बिनसे मन का।
सुख सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥

भक्ति का महत्व

आरती की यह पंक्ति भक्ति के महत्व पर प्रकाश डालती है। जब भक्त भगवान की भक्ति करता हैं तो उसका मन शांत हो जाता है और वह दुखों से मुक्त हो जाता है, उसे सभी सुख प्राप्त होते हैं। उसके घर में सुख-समृद्धि आती है और शरीर के कष्ट दूर हो जाते हैं।

इससे पता चलता है कि भक्ति ही जीवन में सुख और शांति प्राप्त करने का एकमात्र मार्ग है। और जो भक्त जो ईश्वर का ध्यान करता है, उनकी शरण जाता है, उसे सभी सुखों की प्राप्ति होती है।


3. ईश्वर के प्रति समर्पण कैसा होना चाहिए?

मात पिता तुम मेरे, शरण गहूं मैं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूं मैं किसकी॥

आरती की इस लाइन में भगवान पर किस प्रकार भरोसा करना चाहिए यह संदेश दिया गया है।

भक्त जब ईश्वर की सच्ची भक्ति करता है, तो वह ईश्वर के अलावा किसी और पर भरोसा नहीं करता हैं। यहाँ तक की वह वह उन्हें अपना माता-पिता मानता है, अपना सबकुछ ईश्वर को ही मानता हैं और उनकी शरण में जाता हैं।

तुम बिन और न दूजा – उनके अलावा उसके लिए कोई दूसरा नहीं होता है।

यह हमें सिखाता है कि ईश्वर हमारे जीवन में माता-पिता की तरह ही महत्वपूर्ण हैं। ईश्वर हमें प्यार, देखभाल और सुरक्षा प्रदान करते हैं।

इसलिए हमें अपने जीवन में ईश्वर को सर्वोच्च स्थान देना चाहिए और पूर्ण समर्पण के साथ सच्ची भक्ति करनी चाहिए।


4. ईश्वर का स्वरुप कैसा है?

तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतरयामी।
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सब के स्वामी॥

इन पंक्तियों में भगवान की पूर्णता का वर्णन किया गया है और सर्वोच्चता का गुणगान किया गया है।

ईश्वर की पूर्णता और सर्वोच्चता

भगवान
पूरण परमात्मा” अर्थात् “पूर्ण परमेश्वर” है,
अंतरयामी” अर्थात् “सबके मन की बात जानने वाला” है,
पारब्रह्म परमेश्वर” अर्थात् “सबके ऊपर रहने वाला परमेश्वर” और
“सब के स्वामी” है।

अर्थात ईश्वर पूर्ण हैं, सर्वव्यापी हैं, वे हर जगह हैं, वे सब कुछ जानते हैं और वे सब कुछ कर सकते हैं। वे सबके स्वामी हैं और उनका कोई साकार रूप नहीं है। यह बताता है कि भगवान ही समस्त सृष्टि के स्वामी हैं और उनके पास समस्त शक्तियां हैं।


5. क्या मुझमें कोई विकार है?

तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता,
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥

ईश्वर करुणा के सागर हैं और वे पालनकर्ता हैं। इसका अर्थ है कि ईश्वर दयालु हैं और वे अपने भक्तों की रक्षा करते हैं।

अपने विकारों को जानना और उनका त्याग करना

इस पंक्ति में हम अपने दुर्गुणों को स्वीकार करते है। कहते है की मैं मूर्ख, खल और कामी हूँ।

खल अर्थात क्रूर, कठोर।

यानी की हम अपने विकारों को स्वीकार करते है जैसे की, घमंड, अहंकार, लोभ, मोह, लालच, नफरत, द्वेष, घृणा, क्रूरता, कठोरता अदि।

लेकिन उसके बाद ईश्वर से प्रार्थना करते है की हे ईश्वर कृपा करों और मुझे इन विकारों से मुक्त करो। इसका अर्थ है कि हम अपने पापों को स्वीकार करते है और ईश्वर से क्षमा मांगते है।

यह बताता है कि हमें अपने दुर्गुणों का त्याग करना चाहिए और भगवान की भक्ति में मन लगाना चाहिए।


6. क्या ईश्वर को देखा जा सकता है?

तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति॥

ईश्वर अगोचर हैं

अगोचर अर्थात
– इंद्रियातीत,
– जिसका अनुभव इँद्रियों को न हो सके,
– जिसे देखा, समझा या जाना न जा सके,
– जिसका बोध न हो सके।

ईश्वर अगोचर हैं, इसलिए उन्हें शरीर के किसी भी इन्द्रिय से, जैसे की आँख, कान अदि से जाना नहीं जा सकता, ना आँखों से देखा जा सकता है, ना कानों से सुना जा सकता है। क्योंकि उनका कोई साकार रूप नहीं है।

इससे हमें यह सीख मिलती है कि ईश्वर के स्वरूप के बारे में सोचना व्यर्थ है। हमें बस उनके अस्तित्व और उनकी शक्ति पर विश्वास करना चाहिए।

किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति – इस पंक्ति में भक्त अपनी कमजोरी को स्वीकार करता है। वह हमेशा ईश्वर को पाने के लिए तरसता है। वह ईश्वर पर भरोसा करता है और उसे अपना उद्धारकर्ता मानता है। इसलिए हमें भी अपने पापों का पश्चाताप करना चाहिए और भगवान से क्षमा मांगनी चाहिए।


7. ईश्वर की कृपा

दीनबंधु दुखहर्ता, तुम रक्षक मेरे।
अपने हाथ बढाओ, द्वार पडा तेरे॥

इन पंक्तियों में ईश्वर की कृपा का गुणगान किया गया है और भक्त ईश्वर की कृपा पर भरोसा करता है।

ईश्वर दीनबंधु हैं, दुखहर्ता हैं और रक्षक हैं। इसका अर्थ है कि ईश्वर दयालु हैं और वे अपने भक्तों की रक्षा करते हैं।

इसलिए भक्त ईश्वर से अपने हाथ आगे बढ़ाने और अपने द्वार पर पड़े भक्त को बचाने की प्रार्थना करता है।


8. ईश्वर की भक्ति क्यों करना चाहिए?

विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥

यह लाइन हमें भक्ति का महत्व बताती है। विषय-विकारों को दूर करने और पापों से मुक्ति पाने के लिए भक्ति आवश्यक है।

भक्ति का महत्व

भक्ति से विषय विकार मिटते हैं, पाप दूर होते हैं और श्रद्धा तथा भक्ति बढ़ती है।

इसलिए हमें पापों से मुक्ति पाने के लिए ईश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए।

हे ईश्वर, हमारे विषय विकार और पापों को दूर करे और मन में श्रद्धा और भक्ति बढ़ाए।

जब मन में भक्ति और श्रद्धा बढ़ती है, तो संतों की सेवा करने की प्रेरणा भी मिलती है।


9. ईश्वर को क्या समर्पण करें?

तन मन धन सब कुछ है तेरा,
तेरा तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा॥

सर्वस्व समर्पण

आरती की ये आखरी पंक्तियाँ ईश्वर को सर्वस्व समर्पण का संदेश देती है। सच्चा भक्त यह मानता है की तन, मन, धन सब कुछ ईश्वर का है। वह स्वयं को भगवान को समर्पित करता है।

इसका अर्थ है कि हमें अपना सब कुछ ईश्वर को समर्पित करना चाहिए।


Summary

इस प्रकार आरती की इन सभी बातों को अपने जीवन में उतारकर हम एक बेहतर इंसान बन सकते हैं और अपने जीवन में सुख और समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं।


Om Jai Jagdish Hare

Anuradha Paudwal


Krishna Bhajan



श्री हरी की भक्ति

मुक्ति के आदि कारण श्री हरि को अपने ह्रदय में स्थापित करके, जो प्रतिदिन भक्ति पूर्वक उनका चिंतन करता है, वह मोक्ष का भागी होता है। जो ईश्वर का भक्ति पूर्वक पूजन करते हैं, उन्हें दुखमयी यातना नहीं भोगनी पड़ती।

जो भगवान श्रीहरि की आराधना में संलग्न हो, नियमित रूप से उनका ध्यान करता है, वह मनुष्य संसार बन्धनमें नहीं पड़ता।


ओम जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे।
भक्त जनों के संकट, दास जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥ ओम जय जगदीश हरे॥


जो सब समय में भगवान श्री हरि के चरणों में अपने कर्मों को अर्पण करता है, वह संपूर्ण कामनाओं को पा लेता है। ईश्वर भक्ति और ध्यान से मनुष्य सब पापों से शुद्ध चित्त होकर उत्तम गति को प्राप्त होता है और श्रीहरि में तन्मयताको प्राप्त होता है।


एक ही परमात्मा है, कोई उसका दुसरा नहीं। एक ही को लोग बहुत से नामोंसे वर्णन करते है। है एक ही, किन्तु उसको बहुत प्रकारसे कल्पना करते है। इसलिए मनुष्य मात्रको उचित है की, नित्य सुबह-शाम उस सर्वव्यापी परमात्मा का, उस हरी का, ध्यान करें और उसकी स्तुति करें।

मनुष्य प्रतिदिन उठकर सारे जगतके स्वामी, देवताओंके देवता, अनंत पुरुषोत्तमकी सहस्र नामोंसे स्तुति करें। सारे लोकके महेश्वर, लोकके अध्यक्ष (अर्थात शासन करनेवाले) सर्व लोकमे व्यापक भगवान विष्णु की, जो ना कभी जन्मे है, न जिनका कभी मरण होगा, नित्य स्तुति करता हुआ मनुष्य सब दुःखोंसे मुक्त हो जाता है। जो सबसे बड़ा तेज है, सबसे बड़ा तप है, सबसे बड़ा ब्रह्म हैं और सब प्राणियोंके सबसे बड़े शरण है, वे भगवान् श्री जगदीश्वर ही है। वे श्री हरी ही है, जो पवित्रोंमें सबसे पवित्र, सब मंगल बातोंके मंगल, देवताओंके देवता और सब प्राणिमात्रके अविनाशी पिता है।

श्री हरिके चरणों में श्रद्धा सुमन

ओम जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे

छु लेने दो प्रभु चरणों को,
तेरे दर के पुजारी नाथ हैं ये।
कर लेने दो दर्शन आँखों को,
अब दरस की प्यासी नाथ है ये॥

है धन्य जुगल पद आज भये,
जो चलकर तेरे दर आये।
प्रभु चरनन में जो ये शीश झुका,
धन्य भया अब माथ हैं ये॥

आज कृतारथ वाणी है,
भगवान का जो गुणगान किया।
है नाथ तेरा पूजन करके,
सफल भये अब हाथ हैं ये॥

कर्ण हमारे धन्य भये,
प्रभु नाम सुने जो आ करके।
चरण कमल जो मन में धरे,
है धन्य भया हदय नाथ है ये॥

चाह नहीं कुछ और हमें,
मन मंदिर में तुम आन बसों।
कण कण में प्रभु दरस मिले,
भक्त की अब बस विनती है ये॥

ओम जय जगदीश हरे,
स्वामी जय जगदीश हरे।
भक्त जनों के संकट,
क्षण में दूर करे॥
॥ओम जय जगदीश हरे॥


देखा करूं सुन्दर तुम्हारी
मूर्ति ही मनमोहिनी।
सुनता रहूं सरस कथा
बस आपकी ही सोहनी॥

इससे अधिक सुख है नहीं,
यदि हो ना लूंगा मैं कभी।
भगवद चरणों में ही मुझे
आनंद मिलता है सभी॥

हे प्रभु, सेवक की प्रार्थना
यह पूर्ण कृपया कीजिये।
शरण में मै आपके हूं,
भवसागर से तार दीजिये॥


Krishna Bhajan